फिर धुंध उठी

My latest attempt at Hindi /Urdu poetry

फिर धुंध उठी, मौसम-ए-बहार आया
क्या हुआ, अब कौन सा बुख़ारआया।

दवा   तक   देते   नही  अब  चारागर
मर्ज़ आया नहीं, दर्द ज़ार-ज़ार आया।

पिछली बार मैख़ाने गए कब याद नही
बिन पिये कौन सा ख़ुमार आया।

दफ़्तर पड़ी उस मेज़ पर  लेटा अक्सर
और  याद  मेरे गांव का  हिसार आया।

मालूम था है वस्ल उनका नामुमकिन
अक्सर गया, करके इंतज़ार आया।

दश्त  के  फूलों से हमको  क्या लेना
तपती हुई  धूलों का कर ग़ुबार आया।

कर गुहार आया, ज़ीस्त दे उधार आया
तर्क-ए-आरज़ू  का पल बेशुमार आया।